क्या आप जानते हैं कि समुद्र मंथन क्यों करना पड़ा?

समुद्र मंथन हिंदू धर्म के पौराणिक कथाओ में इसका वर्णन मिलता है। यह कथा देवताओं और असुरों के बीच हुए एक संयुक्त प्रयास के बारे में बताया गया है जिसमें देवता और असुरों क्षीर सागर नमक समुद्र को एक साथ मंथन करके अमृत पाने के लिए  प्रयास किया. इसका वर्णन महाभारत और रामायण में भी है।

एक बार राजा इंद्र और राजा बलि में युद्ध हुआ जिसके देवताओं को हार का सामना करना पड़ा और देवताओं से स्वर्ग छीन गया राजा इंद्र बहुत परेशान हो गए कोई विकल्प नहीं सूझा तो वह भगवान विष्णु जी के पास गए और अपनी परेशानियाँ बताईं तब भगवान विष्णु ने उन्हें देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का विकल्प बताया। उसके समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा जिसका पान करके वह अमर हो जायेंगे।

फिर देवता और असुर के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का निश्चय किया जिसने उन लोगो ने समुद्र मंथन के लिए मंद्रांचल पर्वत और वासुकि नाग को रस्सी बनाया जिसमें भगवान विष्णु कछुवा “कूर्म” का वेश धरन करके मन्द्रांचल पर्वत को अपनी पीठ पर रखा जिसे वह समुद्र में ना डूब जाए।

समुद्र मंथन के समय सबसे पहले कालकूट विष निकला जिस से चारो या हाहाकार मच गया जिसे भगवान भोले नाथ ने अपने कंठ में धारण करके सृष्टि की रक्षा की  और नीलकंठ कहलाये। (मन को मथने से भी सबसे पहले बुरे विचार बाहर निकलते है, बुराइयों को मन न उतारने दें और उनका त्याग करें।)

समुद्र मंथन में दूसरे नंबर पर कामधेनु गाय निकली जिसको ऋषियों ने रख लिया। (जब मन से बुरे विचार निकल जाते हैं तो मन कामधेनु जैसा निर्मल हो जाता है)

तिसरे नम्बर पर उच्चैश्रवा नाम का घोड़ा निकला जो मन की गति से चलता था। इसे असुरों के राजा बलि ने अपने पास रखा था। (जब मन इधर उधर भटकता है तो वह बुराइयों की तरफ ही जाता है।)

चौथे नंबर पर ऐरावत हाथी निकला जिसे देवराज इंद्र ने अपने पास रखा। ऐरावत हाथी शुद्ध बुद्धि का प्रतीक है। (जब मन बुराइयों से दूर होगा तब हमारी बुद्धि शुद्ध होगी। अगर आपके विचार शुद्ध होंगे तो मन भी सुद्ध होगा)

पांचवे नंबर पर कौस्तुभ मणि निकला जैसे भगवान विष्णु ने अपने हृदय पर धारण किया और यह मणि भक्ति का प्रतीक है (जब मन से बुरे विचार निकल जाते हैं तो बुद्धि शुद्ध हो जाती है और भक्त को भगवान की कृपा और हृदय में स्थान मिलता है।)

छठवें नंबर पर निकला कल्प वृक्ष जैसे देवताओं ने स्वर्ग में स्थापित कर दिया, कल्पवृक्ष सभी इच्छाओं को  पूरा करने वाला वृक्ष है।(भक्ति करते समय और मन का मंथन करते समय अपनी इच्छाओं को अलग कर देना चाहिए जैसे कि कल्पवृक्षों को देवताओं ने स्वर्ग में स्थापित किया था।) 

सातवें नंबर पर रंभा नाम की अप्सरा निकली और देवताओं के पास गयी थी. यह कामवासना और लालच की प्रतीक थी।(जब हम भक्ति करते हैं तो हमें कामवासना और लालच जैसी बुराइयों से बचना चाहिए।)

आठवे नंबर पर देवी लक्ष्मी निकली जिसे देवता और दानव सभी अपने पास रखना चाहते थे लेकिन लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु का वरण किया (लक्ष्मी जी उन्हीं लोगों के पास रहती हैं जो कर्म को महत्त्व  देते हैं और धर्म के अनुरूप काम करते हैं।)

नवें नंबर पर वारुणी देवी अर्थात मदिरा निकली जिसको दैत्यों ने ग्रहण किया।( नशा करना एक बुरा है नशा करने वाला व्यक्ति हमेशा बुराइयों की तरफ ही जाता है।)

दसवें नंबर पर चंद्रमा निकले जैसे शिव जी ने अपने मस्तक पर धारण किया। चंद्रमा शांति और शीतलता का प्रतीक है।(जब हमारा मन सभी बुराइयों से दूर हो जाता है तब हमें शांति और शीतलता मिलती है।

ग्यारहवे नंबर पर पारिजात वृक्ष निकला जिसको छूने मात्रा से शरीर की सारी थकान दूर हो जाती है। इसे भी देवताओं ने अपने पास रखा। (जब मन में शांति और शीतलता आती है तो शरीर की सारी थकान दूर हो जाती है।)

बारहवें नंबर पर पांचजन्य शंख निकला जिसको भगवान विष्णु ने अपने पास रखा। (ये शंख हमें संदेश देता है कि शांति और थकान दूर होने के बाद भी हमारा मन भक्ति में लगा रहता है।)

तेरहवें और चौदहवें नंबर पर धन्वंतरि अमृत कलश लेकर  प्रगट हुए जैसे भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण करके देवताओं को अमृत का पान कराया।(जब सारी बुराइयां दूर होने के बाद हम भक्ति करते हैं तो हमें भक्ति मिलती है यानी हमें भगवान की कृपा मिलती है।)

यह कथा हमें सिखाती है कि एकता और सहयोग से किसी भी मुश्किल कार्य को पूरा किया जा सकता है। इसके साथ ही, यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए धैर्य और संयम रखना चाहिए।

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